Hindi Short Story // नील – एक प्रेम कहानी

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नील

रिश्ता हो गया, बात पक्की हो गई।” मैंने दिल ही दिल में सोचा कहीं मेरी सास और नन्दे भी दूसरी सासों और नन्दों की तरह ही न हों । गुस्सा और तानों का शर्बत बनाने और पिलाने वाली, बेटे या भाई पर धौंस जमाने और जमाते रहने वाली। वे मुझसे नफ़रत न करने लगे कि हमारे भाई या बेटे की मुहब्बत को शेयर करने आ गई। मगर वह सब मेरे गलत ख्याल थे, सिर्फ वहम था। मैं बहुत बड़े शक का शिकार थी। शादी के बाद पता चला कि मेरी सास, नन्हें और शौहर राजेन्द्र बाबू तो बहुत अच्छे लोग हैं। वे लोग हर वक़्त ख्याल रखा करते। मैं ईश्वर का ध्यान ज्ञान करके हाथ उठा कर अपने और अपने घर परिवार के लिए शुभ कामनाएं कर रही थी कि अचानक किसीने पीछे से मेरी कमर पर गुदगुदी की। मैंने बन्द आंखों और ईश्वर के आगे फैले हाथों की हालत में ही पहचान लिया कि राजेन्द्र आफिस से आ चुके “कौन सी दुआ मांग रही हो ? मेरे लिए भी दुआ करना।” वह मेरे करीब ही फर्श पर बैठे बैठे जूतों के तस्मे खोलने लगे। मैंने पूजा पाठ पूरा करने के बाद उन पर फूंक मारी तो उन्होंने हंसते हुए मुझे बाहों में भर लिया और फिर वही सुलूक किया जो राजा अपनी रानियों के साथ किया करते थे। “ऊहू, खाना लगाऊं आपके लिए?” “हां गर्म कराओ और जरा मुझे भी माला दो कि मैं भी मुंह हाथ धोकर कुछ ध्यान कर लूं।” उन्होंने कहा। मेरी निगाहों के सामने अचानक मुरारी आ गया | मेरे और मेरी मम्मी के खेल का शिकार मुरारी।
“माला कहां है बबीता सहगल साहिबा ? फर्श पर आसन बिछा रहने दो, मुझे भी कुछ ध्यान करना है। ” मैं चौंक उठी। कहां से कहां पहुंच चुकी
थी। दर्द की एक टीस सी मेरे पूरे वुजूद में फैल चुकी थी। “पता नहीं कहां खो गया वह, एक छोटे से मजाक से । कहीं मेंने ही तो बेवफाई नहीं
की?” मैं होन्ट काट कर रह गई। “बबीता साहिबा!” राजेन्द्र ने पुकारा। “जी ” “हमारी शादी को कितना जमाना हो गया?” उन्होंने तौलिये से हाथ मुंह पोंछते हुए मेरे पेट की तरफ़ देखते हुए मुस्करा कर मानीखेज़ अन्दाज़ में पूछा। “खाना लगा रही हूं, बेतुकी बातें न करते रहा करें।”
राजेन्द्र मुस्कराते हुए खामोश हो गया। अचानक नक्शा बदल गया । मुरारी का वजूद फिर मेरी नज़रों में था- “अरे बेतुकी बातें
कैसी । बस तुम्हारी मर्जी है तो मैं तुम्हें बबीता से बेबी कहूंगा शादी के बाद।”

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__ वह जिसको मैंने पूरे खानदान की मुखालफ़त मोल लेकर पसन्द किया था अपनी सोच और मेरे खानदान की ज़िद की भेंट चढ़ गया।
“बबीता! तुम मुझसे ज़िन्दगी का तोहफा वापस तो नहीं लोगी ना?” “मैं …. नहीं तो… मैं तो तुमसे यह निशानी भी वापस नहीं लूंगी। पहले खा लो
फिर जरा जोजो पार्लर भी जाना है।” “बात न बदलो, तुम्हारे डैडी तुम्हारे लिए आए हुए कई रिश्तों को तालीम, दौलत और अलग थलग घर के ताने दे चुके हैं।” “देने दो उनको, मैं कोई हूर परी नहीं हूं। हां तुम्हारे साथ हूं।” “कहां खो गयीं बबीता ! खाना लगाओ अब ।” राजेन्द्र चिल्लाए।
मेरी निगाहों में बराबर मुरारी शोर मचा रहा था- “बबीता जानी! खाना…खाना
नोडल्ज गर्म कर देना और कबाब भी सलाद के साथ ।” “हां जरा चिकन सूप गर्म कर रही हूं,खासा गाढ़ा हो गया।” “गाढ़ा तो होना ही था। मेरे ख्यालों में खोई रहोगी तो खाने का तो नास होगा ही ना।” उसने हंसते हुए कहा।
आंसू मेरी आंखों से छलक पड़े। राजेन्द्र मुझे रोता देखकर परीशान हो गए। मेरे आंसू पोंछे। रात को वह खासी देर तक इस पहेली  पर गौर करते रहे जैसे एक गुत्थी सुलझाने की कोशिश करते रहे। मुझसे बार बार पूछते रहे। अपनी भरपूर मुहब्बत और वफ़ा का यकीन दिलाते रहे।
मैं वेस्टर्न  औरत हूं, सब कुछ बता दिया कि रिश्ते के एक पढ़े लिखे मगर सीधे सादे लड़के को पसन्द करके ठुकरा चुकी हूं। उसे अपनी मुहब्बत से सब्ज बाग दिखा चुकी हूं। बेवफाई की रिवायत को आगे बढ़ा चुकी हूं।
उस कथा को सुनकर वह दंग रह गया और सर पकड़ कर बैठ गया। कछ दिनों बाद जब मैं एक लड़की की मां बनी तो राजेन्द्र, उसकी मां और उसकी बहनों का रवैया पूरी तरह बदलता चला गया। मुझे क्रिकेट बाई चांस की बजाय औलाद बाई चांस लगने लगी।

शाम का झुटपुटा था। ऐसे में अकेली रोती पीटती हुई मम्मी के घर आ गई । राजेन्द्र ने मुझे बहुत मारा था, जहनी तौर पर, रूहानी तौर पर, जिस्मानी तौर पर । वह मुरारी के करेक्टर को अब हर तरह मेरे साथ जोड़ रहा था। कितनी मजबूर हो जाती है औरत सच बोल कर । मैं रो रोकर अपनी बेगुनाही की क़समे खा रही थी और वह कह रहा था कि मेरे काले करतूतों की वजह से खुदा ने मुझे पहली औलाद लड़की की सूरत में दी है। कितनी घटिया सोच थी उसकी। ऊंची सोसाइटी वाला इलाका इन वहशियों के शोर शराबों से गूंज रहा था। मैं खामोशी से बाहर निकल आई। घर आकर में मम्मी के कान्धे से सर लगाकर जार जार रोने लगी।
“मम्मी! आप जिन लोगों को फूल समझती थीं वे कान्टे निकले। एक कान्टों भरा रास्ता ।” वह मुझे तसल्लियां देती रहीं। “राजेन्द्र ने एकदम रंग बदला है। अब उसका असली जिस्म और मुरारी की यादों का जिस्म मेरे लिए दुख ही दुख है । मैं इन दो दो जिस्मों का बोझ बर्दाश्त नहीं कर सकती।” “सब्र करो बेटी ! गुजारा करना ही पड़ता है। तुम तो औरत हो।” “यह कैसी औरत है मम्मी! कि जिसके बदन पर शौहर के दिए हुए अनगिनत नील पड़े “नीलों की बात न करो पगली! यह देखो मेरी जान !” मम्मी ने आंसू भरी आंखों से मुस्कराने की कोशिश करते हुए पीछे से अपनी कमीज उलट दी। मुझे अपनी आंखों पर यकीन नहीं आ रहा था। उनकी तो पूरी पीठ और बाजुओं पर नील ही नील थे।
___ “मुझे वापस जाना होगा मम्मी! अभी और इसी वक्त।” मैंने अपना फैसला सुनाते हुए कहा।
“अरे अभी तो इस कदर नाराज़ थी राजेन्द्र से और उसके घरवालों से । अब पल भर में क्या हो गया ?” उन्होंने हंसते हुए पूछा।
मैं फूट फूटकर रोते हुए बोली- “मम्मी! मेरे जिस्म पर पड़े हुए नील आपके बदन पर पड़े हुए नीलों से बहुत कम जो हैं इसलिए मुझे वापस
जाना होगा अभी इसी वक्त।”

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