Shekh chilli ki kahani
एक बार शेख चिल्ली अपने मुहल्ले से बाहर कुछ लड़कों के साथ एक पुलिया पर बैठा हुआ था। वह तिराहा था। शहर से आए एकसाहब ने लड़कों से पूछा- “क्यों भई, शेख के घर को कौनसी सड़क जाती है ?”_क्या पूछा साहब ! आपने ?’ सोलह साला शेख चिल्ली ने सवाल किया।“भाई ! शेख साहब के घर कौनसा रास्ता जाता है ?”इससे पहले कि कोई लड़का बताए, चिल्ली बीच में बोल पड़ा- “इन तीनों में से कोई भीरास्ता नहीं जाता।
“__ “तो कौन सा रास्ता जाएगा ?” अजनबी ने पूछा।”कोई नहीं।” चिल्ली ने जोर देकर जवाब दिया।”बेटे ! शेख साहब का यही गांव है। वे इसी गांव में रहते हैं।” अजनबी लोग”हां रहते तो इसी गांव में हैं।” चिल्लीने हामी भरी।”तो मैं यही पूछ रहा हूं कि कौन सा रास्ता उनके घर तक जाएगा।
” अजनबी ने सवाल दोहराया।चिल्ली ने फिर वही जवाब दिया।वे साहब झुन्झलाए। उन्होंने सोचा कि चलो आगे किसी से पूछ लूंगा। चिल्ली ने उन्हें बताया- “मैं शेख साहब का बेटा चिल्ली हूं और घर तक आप जाएंगे यह सड़क और रास्ते नहीं।
ये कहीं नहीं जाते,ये बेचारे तो चल ही नहीं सकते इसलिए मैंने जवाब दिया था कि ये रास्ते कहीं नहीं जाते,यहीं रहते हैं। आपको अगर शेख साहब के घर जाना है तो वह रास्ता मैं बताता हूं । उसपर चलकर आप घर पहुंच जाएंगे।“अरे बेटा चिल्ली” वह आदमी खुश होकर बोला- “तू तो वाकई बड़ा समझदार हो गया है।”बाद में शेख चिल्ली के ससुर वही साहब बने।
Sheikh chilli kahani
शेख चिल्ली सिर्फ पांच साल के थे और चौकी पर बैठे हुए थे। उनके वालिद के कुछ दोस्त घर आए, वे बैठे रहे । जब मेहमान चलेगए तो शेख साहब की अम्मी ने समझाया-“बेटे! जब कोई बड़ा आदमी आए तो उसे बैठने के लिए जगह देनी चाहिए।” “अब ध्यान रखूगा।” शेख ने कहा।
एक दिन शेख साहब अपनी अम्मी की गोद में बैठे हुए थे कि उनके चचाजान घर पर आ गए। शेख साहब फौरन अपनी अम्मी की गोदछोड़कर खड़े हो गए और अपने चचासे बोले-“आइए चचा जान ! यहां गोद में बैठिए।” चचा तो मुस्करा दिए मगर अम्मी जान ने झेंपकर मुंह फेर लिया।
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