Story on Love in Hindi for Lovers – आग का दरिया 

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Let`s Read a very interesting Story on love in Hindi Language.

आग का दरिया 

हिन्दोस्तान में जोहरा नाम की तीन  मशहूर तवाइफ गुजरी हैं । जोहरा बाई अम्बालेवाली, जोहरा बाई फैजाबादी और जोहरा बाई गोन्डा वाली। उनकी आवाज की शोहरत मुल्क के कोने कोने में थी मगर इन तीनों मुजरा करने वाली तवाइफों में जोहरा बाई गोन्डा वाली की पुरकशिश शख्शियत  सबसे  पहले नम्बर पर आती है। वह बाईस तेईस साल की एक क़यामत खेज हसीना थी। उसकी आवाज़ में बला का जादू था।उसके घुन्धरुओं में झरनों की आवाज़ थी, उसके चेहरे पर सितारों की चमक थी।

उसे देखकर ऐसा लगता था जैसे कायनात का सारा हुस्न सिमट कर उसके चेहरे पर ठहर गया हो। उसकी आवाज़ में बला का जादू था। उसका नाच भी कम होशरूबा न था। वह जिस महफ़िल में जाती लोग दिल थामकर रह जाते। हर कोई उसका दीवाना था। मगर वह सबसे बेनियाज़ अपने ही हुस्न के नशे में डूबी अपनी ही आवाज़ के जादू में गुम, खुद आप पर फ़िदा थी। कभी कभी घन्टों अपने आपको आईने में देखा करती।

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यह वही दौर था जब ज़ोहराबाई के दीवाने उसकी तस्वीरें तकिये के नीचे रखकर जागा करते थे। गांव के जागीरदार उसे अपनी हर तकरीब (फंक्शन) में बड़ीबड़ी रकमें देकर बुलवाते थे। शहर के बड़े बड़े रईस उसे किसी भी कीमत पर हासिल करने की तमन्ना रखते थे। समाज के इज्जतदार लोगरातों को छुप करचेहरे पर ढाटा बान्ध कर उसका मुजरा सुनने और देखनेजाते। जिसने भी एक बार जोहरा का नाच देखा उसके लिए घर लौटना मुश्किल हो जाता। जोहरा बाई की जादू भरी शख्सियत ने कितने सेठों की तिजोरियां खाली करदी थीं। कितने वफादार शौहरों को अपनी बीवियों से बेज़ार कर दिया था। जिसके पास ज़ोहरा बाई का आटोग्राफ होता वह अपने आपको बहुत खुश किस्मत समझता था। उसकी दिल फ़रेब मुस्कराहटों पर एक जहान निसार था। अदाएं तो तवाइफों का जेवर होती हैं मगर ज़ोहरा की अदाओं में वह जादू था जो अच्छों अच्छों को जोहरा का ख्वाब देखने पर मजबूर कर देता था।


यह उन्हीं दिनों की बात है जब उसने भी एक ख्वाब देख डाला। उसका नाम बदर था। वह गोन्डा शहर ही का था। एक सीधा सादा सा नौजवान था । मुहल्ले के लोग प्यार से उसको ‘बदल’ कहा करते थे। छह फुट लम्बा, सांवली रंगत वाला मजबूत जिस्म का वह एक हैंडसम नौजवान था जो अपनी झील सी गहरी और बड़ी बड़ी आंखों से एक मजबूत इरादों का मालिक लगता था। हालांकि वह एक मामूली सा अनपढ़, सब्जी बेचने वाला था मगर जब किसी रास्त सराजरता तो लडकियां अपने घरों के झरोखों से छुप छुपकर देखा करतीं।

कितनी लड़कियों ने अपने परचे भिजवाए थे। एक अमीर खानदान की लड़की तो इस कदर दीवानी थी कि बुरका पहन कर सब्जी खरीदने के बहाने उसकी दुकान पर तक़रीबन हर रोज़ आया करती और बदर को इन सारी बातों का पता था मगर वह उससे इस तरह दूर रहता जैसे मुहब्बत की परछायीं भी पड़ गई तो उसके फरिश्ते जैसे करेक्टर को मैला कर देगी। वह मुहब्बत का दुश्मन भी नहीं था।

एहसास और जज्बों की जबान समझता था मगर उसका नजरिया यह था कि शादी के बाद बीवी से मुहब्बत करना चाहिए। उसे क्या पता था कि मुहब्बत इरादा करने से नहीं होती,यह सोच समझ कर नहीं की जाती। यह तो किसी भी लम्हे, किसी से भी हो सकती है। मुहब्बत अमीरी, गरीबी, ऊंच, नीच और उम्र नहीं देखती। मुहब्बत सारे रस्मो रिवाज और रिश्तों की कैदसे आज़ाद है। इस हकीक़त का यकीन बदर को उस दिन आया जिस दिन उसने एक फंक्शन में पहली बार ज़ोहरा को देखा। उसे ऐसा लगा उसके मज़बूत इरादों की चट्टान रेज़ा रेज़ा होकर बिखर गई हो। जोहरा  का हुस्न और उसकी खूबसूरत आवाज़ ने उसको ऐसा बान्धा कि वह लाख कोशिश के बावजूद उसकी कैद से आज़ाद नहीं हो सका। उठते बैठते, सोते जागते, हर महफ़िल, हर रास्ते पर जोहरा छा गई।


जोहरा,जोहरा,जोहरा..यह नाम नया नहीं था। यह एक ऐसा नाम था जिसे पढ़कर वह दुनिया की हर चीज़ का नाम भूल गया था। घरवालों ने जब उसे चुपचुप और उदास देखा तो उसकी शादी के लिए रिश्ता ढून्ढना शुरू कर दिया। हमारे समाज में जैसे हर परीशानी का हल शादी है मगर घर वालों की इस ख्वाहिश को उसने टकरा दिया। जैसे जैसे वक़्त गुज़रता गया उसकी बेचैनी बढ़ती गई और अब तो यह आलम था कि ग्राहक अगर उससे शलजम मांगते तो वह पालक उठा कर दे देता। शाम को जब दुकान समेटता तो दिन भर की बिक्री के पैसे वहीं छोड़कर उठ जाता। घर में दिल न लगता, दोस्तों से बेज़ारी आ गई। दुकान बन्द करने के बाद वह कोई तन्हा को नात लाश करलता जहां बैठकर वह जोहरा के ख्यालों में डूब जाता।

Story on love in hindi written by : Haaris Hassan
अक्सर वह अपने खेतों के किनारे एक कुएं की मुन्डेर पर बैठादूर तक जाती हुई पगडन्डियों को देखकर अपने आपसे सवाल करता कि क्या मेरे खेतों की तरफ से कोई रास्ता जोहरा के घर तक भी जाता है ? उसके अन्दर से आवाज़ आती “तुम जिसकी तलाश में निकले हो तुम्हारी पहुंच से दूर है। जोहरा शोहरत के आसमान पर रहने वाली एक शहजादी और तुम एक गरीब, अनपढ़, सब्जी बेचने वाले। सितारों पर चलने वाले कदम ज़मीन पर नहीं उतर सकते। बेहतर है तुम उसे भूल जाओ।” वह बहुत बेबसी से आसमान की तरफ़ देखता और चेहरे पर उदासी फैलती चली जाती। वह लम्हा लम्हा एहसासे कमतरी का शिकार होता जा रहा था। हकीकत में ज़ोहरा को पाना तो दूर की बात थी, अब तो उसे अपने ख्वाबों में लाने से भी शर्मिन्दा हो रहा था और जोहरा के ख्यालों से आजाद होना भी उसके बस में नहीं था। यह एक ऐसी बेबसी थी जो हर मुहब्बत करने वाले पर गुज़रती है।

हमदर्द दोस्तों ने मशवरा दिया कि शादी कर ले। बीवी ज़िन्दगी में आ जाए तो ज़ोहरा दिल से निकल सकती है। मगर कैसे मुमकिन था? यह दुख तोवही जानते हैं जिन पर गुज़रती है। एक आशिक के लिए इससे बढ़कर कोई तकलीफ़ नही होती कि दिल में कोई औरहो और जिस्म पर किसी और की हुकूमत हो। दो हिस्सों में बंटा हुआ आशिक एक ज़िन्दालाश होता है। वह भलाबीवी को कैसे खुश रख सकता था।

ख्यालों में जब हर वक्त चान्द बसता हो तो वहां सितारों कीक्या अहमियत? उसके लिए जैसे दुनिया के सारेरास्तेबन्दहो चुके थे, दुकान अब कभी कभी खुलती थी। ज्यादातर वक्त वह बन्द कमरे में गुजारता । इश्क इन्सान को जाने क्या क्या सिखा देता है। एक अनपढ़, गांव वाला जो अपना नाम भी ठीक से नहीं लिख सकता था अब वह अपनी देहाती ज़बान में शायरी करने लगा था।

वह लफ्जों की तरतीब से नावाकिफ था मगर दर्द में डूबकर जब वह शायरी करता तो उसके लफ्ज़ दिलों को छू जाते। उस ज़माने के बड़े मकबूल शायर जिगर मुरादाबादी उसी मुहल्ले में रहते थे। बदर से उन्हें बड़ी हमदर्दी थी। वह अक्सर बदर से शेर सुनाने की फरमाइश करते औरजब वह अपना कलाम सुनाता तो उनकी आंखें छलक पड़तीं। ( ऐसी कई महफ़िलों में बेकल उत्साही भी शरीक रहे हैं) बदर सुनाता जाता और जिगर दाद देते जाते और धीरे धीरे उन पर एक अजीब सी कैफियत तारी हो जाती और तब वह कहते- “बदर ! तुम्हारे सामने जिगर तो कुछ भी नहीं है।”

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इश्क में लफ्ज़ जब दर्द का इजहार करते हैं तो हर्फ हर्फ कुआंनी आयात की तरह रूहको मतास्सिर कर देता है। जिगर साहब अक्सर लोगों से कहा करते- “तुम बदर का अदब किया करो। वह अपनी सतह से ऊपर उठ चुका है।” गांव के सीधे सादे लोग मुहब्बत का फ़लसफ़ा क्या जाने ? उन्हें तो सिर्फ इतना मालूम था कि बदर को एक नाचने वाली से इश्क हो गया और रात दिन उसके ख्यालों में खेतों, खलियानों, बागों और सड़कों पर आवारा गर्दी करता फिरता है।

मुहब्बत धीरे धीरे इश्क के जीने पर कदम रख रही थी। मैले कपड़े, उलझे बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी, सूखे होन्ट, घर वाले तो बेहद फिक्रमंद थे। हर कोई उसे टोकता, हर कोई उससे सवाल करता मगर उसके पास शायद कोई जवाब न था। एक बहुत बेचैन सी रात के जाने किन लम्हों में उसे मशहूर बुजुर्ग हाजी वारिस अली शाह का ख्याल आ गया जिनका वह बरसों से अकीदतमन्द था।

उसके दिल में उम्मीद की एक आखिरी किरन पैदा हुई। सुबह होने से पहले उसने दरगाह शरीफ का रुख किया और जब वह पहलीबार वारिसपाक के आस्ताने पर पहुंचा तो नौचन्दी जुमेरात थी। इत्र, फूल और लोबान की खुशबू से महकती फजा में महफ़िले समा (क़व्वाली) शुरू हो चुकी थी। वह आस्ताने के सामने एक दीवार से लगकर बैठ गया। यह इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजे एक आग का दरिया है और डूब के जाना है कव्वाल ने जैसे ही यह शेर पढ़ा उसे लगा उसके दिल के चरागो मे आग लग गई हो ।

दुख की काली चादर में रौशनी की किरनें क्यों कैद की जाती हैं ? घन्टों वह सकते की हालत में रहा और जब होश आया तो वह वारिस पाक से फ़रियाद कर रहा था- “सरकार! मेरी ज़ोहरा मुझे अता कर दीजिए या इस कैद से मुझे आज़ाद कर दीजिए।” मगर दूसरी तरफ़ बराबर खामोशी थी यह वह मकाम है जहां लब सी दिए जाते हैं । मायूसी के आलम में उसने आस्ताने पर पूरे दस दिन गुजार दिए। इश्कने जाने कितनी ही मन्जिलें तय कर लीं, अब उसे अपने खाने पीने का भी होश न रहा। लोग भिकारी समझ कर उसके आगे पैसा, तो कभी रोटी के चन्द टुकड़े डाल देते मगर यह कोई नहीं जानता था कि वह हक़ीर सा इन्सान वारिस पाक का खास मेहमान था।

इन्सान कायनात से जब जात के सफर पर निकल जाए तो सही, गर्मी, बारिया, धूप का उस पर असर नहीं होता । आस्ताने के पास ही नीम के पेड़ कीशावें अहातेकी ऊंची दीवारों परसाया किए रहती। मगर वह हमेशा साये से हटकर बैठता । मगर आज उसका दिल यहां से भी उचाट हो गया जहां वह जोहरा को पाने की आस लेकर आया था। उसने फिर सफर का इरादा किया और गोन्डा आ गया मगर अपने धर नहीं बल्कि शहर से कुछ मील दूर एक गैर आबाद इलाके में जिसे करबला कहते है। बदर यहां आकर एक वीरान खन्डहर में कैदसा होकर रह गया।

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अरसा गुजर गया, बदर अपने वीरान खन्डहर से बाहर ही नहीं निकला। बेचैन समन्दर खामोश केसे हो गया ? वीराने से निकल कर यह बात धीरे धीरे गांव और शहर के कूचे कूचे में फैल गई। जब जोहरा को इसकी खबर हुई कि उसकेइश्क में कोई दीवाना कैस की तारीख दोहरा रहा है तो उसे पहली बार एक धक्का सा लगा और उसके अन्दर एक बेचैनी पैदा हो गई । गुरूर के सारे तिलिस्म पल भर में टूट गए। उसे महसूस हुआ बदर के सामने वह एक हकीर सी चीज हो। उसी दिन उसने एक फैसला कर लिया। सादा लिबास पहने और दोनों हाथों में घुन्धरू समेटे जब वह बदरसे मिलने कर्बला के खन्डहर में पहुंची तो उसे ऐसा लगा जैसे दुनिया की सारी चीजें नाच रही हों ।

आसमान परबादल छा गए, सूरज ने शर्माकर मुंह फेरलिया, पेड़ों की शाखों ने झूमझूम कर मुबारकबाद दी। वह धीरे धीरे कदमों से उसके करीब पहुंची। उसका दीवाना आंखें बन्द किए, सर झुकाए एक कोने में बैठा हुआ था। “बदर! आंखें खोलो। मैं आ गई हूं।”


उसने घुन्घरू बदर के सामने रख दिए- “तुम्हारी ज़ोहरा आज सब कुछ छोड़कर आ गई है बदर !” “कौन जोहरा?” उसने नज़रें नीचे किए हए जवाब दिया और अपना रुख फेर लिया। “बदर ! मैं वही ज़ोहरा हूं जिसके लिए तुम यहां तक पहुंचे हो।” “मैं किसी और जोहरा को नहीं जानता, मुझे तो मेरी ज़ोहरा मिल चुकी है।” ज़ोहरा को अब यह समझते देरन लगी कि बदर अब रूहानियत के मुकाम पर है। जोहरा खन्डहर से बाहर आई और अपने तांगेवाले को यह कहकर वापस भेज दिया कि अब वह उसे ले जाने के लिए कभी न आए। इश्क एक ऐसी पहेली है जिसे अक्ल वाले समझ नहीं सके हैं। कर्बला के एक मुकाम पर रहते हुए जोहरा ने अपनी सारी ज़िन्दगी गुज़ार दी।

दोनों अपने अपने रूहानी सफ़र में गुम थे । जब बदर एक रोज़ दुनिया छोड़ गया तो ज़ोहरा जरा भी उदासन हुई। शायद अब वह भी उस मुकाम पर थी जहां कोई बदर किसी जोहरा को नहीं पहचानता । शायद ज़ोहरा ने भी आग का दरिया पार कर लिया था। कर्बला के वीराने में आज भी उनकी मुहब्बत दो कब्रों की शक्ल में मौजूद है और लोगों की जियारतगाह बनी हुई है। हर साल यहा उर्स भी होता है। आज भी उर्स के दौरान जब क़व्वाली होती है तो जिगर साहब का यह शेर ज़रूर पढा जाता है-
यह इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजिये
एक आग का दरिया है और डूब  के जाना है |
कहते है कि अगर मुहब्बत करने वाले यहाँ कोई मन्नत मांगे तो जरूर पूरी  होती है।

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